बेइख्तियार

कुछ अधूरे नगमो को कैसे
तुम्हारे नाजो अंदाज से भर दूं
तुम्हारे सोहबत में मैं कैसे
मसरूर बन कर रह जाऊ

खोए हुए कदमों को कैसे
अनदेखी राहों पर ले जाऊ
बीतें कुछ लम्हों को कैसे
तुम्हारी आरजूओं से भर दूं

इस वक्त को मैं कैसे
बेइख्तियार कर दूं
जिंदगी की कुछ सुर्खियां कैसे
तुम्हारे साथ फिर से जी लूं

हँसी

आज ये पलकें बोझल ही रहेंगी
आज धड़कनों में राहत नहीं होगी
आज ख्वाइशें भारी सी लगेगी
आज साँसे भी सारी शोर मचाएंगी

उलझने जिंदगी कोई
आज सुलझने नही देगी

आज बादल को कोई हटाएगा नही
आज तूफान को कोई रोकेगा नहीं
आज कश्ती को कोई बचाएगा नही
आज दिल को कोई सवारेगा नही

तकदीर को कोई
आज तबदील करेगा नही

कल मगर एक नई सुबह आएगी
कल शायद कोई राह दिख जायेगी
कल कही कोई मुराद मंज़िल पाएगी
कल शायद जीने की तमन्ना मिलेगी

आज को याद कर कल
थोड़ी हँसी भी आ जायेगी

बेजुबान

तू कहां
चल दी
ए जिंदगी

अंजान राहें
तन्हा ये बाहें
रूसवे जो इतने
जुदा हम हमसे

टूटे सपने
गमगीन आंखे
आंगन में बिखरे
ख्वाइशों के अंगारे

ढूंढे पल हलके
ये बोझल पलके
दिलसे पर बरसे
बेजुबान चीखें

तू कहां
चल दी
ए जिंदगी

सुकून

सुकून का एक पल
चुरा लेने दो
इस मंजर की एक याद
छुपा लेने दो
मौसम से थोड़ा सा इत्मीनान
छीन लेने दो
आज एक दूसरे की कुछ सांसे
सुन लेने दो

सोहबत

एक ख्वाब
कुछ जुर्म सा हैं
आज बेनकाब
कुछ दिल सा हैं

ये बेताब
कुछ लम्हे कह गए
वो शादाब
तेरी मौजूदगी में हो गए

सब बेअदब
मेरे इस इकबाल में हैं
अब सबब
अल्फाजों से परे हैं

एक हिसाब
टूटे उसूल माँग रहें
तेरे सोहबत
की कीमत ढूंढ रहें

जाने रब
तुझे महसूस करने की सजा
झेलेंगे अब
किसी अफसोस के बिना

वजह

भरे हुए कैलेंडर के किसी
खतम हुए झूम कॉल पर
अकेले रूके अटेंडी की तरह
जिंदगी ताक रही हैं
सुनसान प्लेटफॉर्म पर
छूटी हुई ट्रेन की वजह

मुठी

ख्वाब सी लगती हैं अब
जिंदगी देखती थी ख्वाब जब
साँसे भी सेहमी सी हैं अब
क्या पता आ जाये तूफान कब
पलके खुली रहेंगी रातभर अब
बंद मुठी में उमीदें सब

तक़दीर

“जिंदगी सुन, तू यही पे रुकना
हम हालात बदल कर आते हैं”

उधार में थोड़ी सी हिम्मत लेकर
अपने वजूद को उम्मीद दे आते हैं

इस तूफ़ान को थाम लो थोड़ा जरा
एक कश्ती को भवंडर से ले आतें हैं

इन पलों को हिरासत में रखना
कुछ ग़मों को आजाद कर आते हैं

खोई हुई धड़कनों की गूँज में
अपने आप को ढूँढ ले आते हैं

जिंदगी सुन, अपनी तक़दीर को
हम थोड़ा हैरान कर आते हैं

कसूर

एक कसूर करने जा रहाँ हूँ
कुछ एक सुर छोड़ जा रहाँ हूँ

जिन नगमों को हम गा ना सकें
तेरे आँगन में दफन किये जा रहाँ हूँ

तेरी आँखरी साँसों की गूँज समेट
कुछ खामोशी ढूंढने जा रहाँ हूँ

मक़रूज़ जिंदगी से कुछ जवाब
अब उसूल करने जा रहाँ हूँ

एक खुदा की खुदगर्ज़ी का कसूर
गवारा करने जा रहाँ हूँ

बोझ

बरसो पहले आयी थी
ऐसी ही एक दीवाली
जिंदगी रोशन नही थी उतनी
हुई मुस्कान से तेरी जितनी

इसलिए आज रो रहे हैं
बनकर हम फरियादी
त्यौहार कैसे बताओ मनाये
तेरे बिना सजा हैं ये रोशनाई

कैसी अंजान बीमारी में फँसकर
हार गयी फूटी तक़दीर
अब यादों का झोला फैलाकर
हम बन गए एक फकीर

घूम रहें हैं कंधोंपर लेकर आज भी
बच्चे तुझसे बिछड़ने का बोझ
लंबी चलेगी अबसे दिवाली क्यों कि
एक साल सा लगता हैं हर रोज