मुठी

ख्वाब सी लगती हैं अब
जिंदगी देखती थी ख्वाब जब
साँसे भी सेहमी सी हैं अब
क्या पता आ जाये तूफान कब
पलके खुली रहेंगी रातभर अब
बंद मुठी में उमीदें सब

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