ये दिल इतनी हड़बड़ी में क्यों हैं
कही वापिस से धड़कने की इसे
कोई उम्मीद तो नही हैं
इस सपनों के समशान में
कोई मिल जाये तो समझादे उसे
ये घाँव आँखरी थोड़ी ही हैं
Poems by Rohit Malekar
ये दिल इतनी हड़बड़ी में क्यों हैं
कही वापिस से धड़कने की इसे
कोई उम्मीद तो नही हैं
इस सपनों के समशान में
कोई मिल जाये तो समझादे उसे
ये घाँव आँखरी थोड़ी ही हैं