समशान घाट की चीखों से दूर
सर पे हाथ रखे था कोई बैठा
“जानपहचान का था या था कोई सगा?”
कर हिम्मत मैंने उसे पूछा
“ना कोई मेरा सगा ना कोई पराया,
पर इंसान, आज तो मैं भी थक गया”
कहकर यमराज अकेले ही रो दिया
#covid19
Poems by Rohit Malekar
समशान घाट की चीखों से दूर
सर पे हाथ रखे था कोई बैठा
“जानपहचान का था या था कोई सगा?”
कर हिम्मत मैंने उसे पूछा
“ना कोई मेरा सगा ना कोई पराया,
पर इंसान, आज तो मैं भी थक गया”
कहकर यमराज अकेले ही रो दिया
#covid19