कैदी 

जितने ऊंचे
हंसी के फवारे
उससे गहरे
ग़म के साये

डूबते हुए अनेक
दुविधा के भवंडर में
शिकायत कर रही
अधूरी ख्वाहिशें

“कुछ और ब्याज
बाकी है”, भी कह रहे
ताकते हुए अतीत से
अनदेखे घाव मेरे

जैसे कई अजनबी
एक डूबती नाव में
हम सारे कैदी फंसे
इस एक जिस्म में

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