लो फिर से हो गए खड़े चौराहें पे
चाहनेवालों को देने फूल के ठेले
अब कुछ मजनू और कुछ लैला खरीदेंगे
अपने इश्क़ का सबूत थोड़े थोड़े सिक्कों में
अरे इस गुल को तो बक्श दिया होता
तुम्हारे चंद रोज के बुखार में कुर्बान ना होता
अगर हैं शौंख मोहब्बत सरहाने का तो सुनो
एक भवरा ढूंढ रहां हैं खोये हुए जीजान को