जितने ऊंचे
हंसी के फवारे
उससे गहरे
ग़म के साये
डूबते हुए अनेक
दुविधा के भवंडर में
शिकायत कर रही
अधूरी ख्वाहिशें
“कुछ और ब्याज
बाकी है”, भी कह रहे
ताकते हुए अतीत से
अनदेखे घाव मेरे
जैसे कई अजनबी
एक डूबती नाव में
हम सारे कैदी फंसे
इस एक जिस्म में
Poems by Rohit C. Malekar
जितने ऊंचे
हंसी के फवारे
उससे गहरे
ग़म के साये
डूबते हुए अनेक
दुविधा के भवंडर में
शिकायत कर रही
अधूरी ख्वाहिशें
“कुछ और ब्याज
बाकी है”, भी कह रहे
ताकते हुए अतीत से
अनदेखे घाव मेरे
जैसे कई अजनबी
एक डूबती नाव में
हम सारे कैदी फंसे
इस एक जिस्म में