इन्सान आज फिर
तू क्यों हैं खोया?
हर वह मकाम
जो तूने ना पाया
उस हर कदम पे
तू जोश से रोया
हर उस मंजिल को
जिसने तुझे अपनाया
छोड़ काफिर उसे
दौड़ा तेरा साया
तेरी आदतें देख
तेरा ख़ुदा भी सहमाया
गर्जे तेरी सुन पंहुचा
अपनी वजूद की इन्तेहाँ
इन्सान आज फिर
तू क्यों हैं खोया?