कमबख़्त वक़्त के फरिश्ते
बेईमानी पे उतर आते हैं
पलक झपकते ही
कुछ साल गुज़र जाते हैं
कुछ रिश्तों के रंग
कुछ अपने खो जाते हैं
कमबख़्त वक़्त के फरिश्ते
बेईमानी पे उतर आते हैं
पलक झपकते ही
कुछ साल याद आते हैं
कुछ मौजुदगिया तो दरकार हैं
कुछ लम्हे कह जाते हैं
Poems by Rohit Malekar
कमबख़्त वक़्त के फरिश्ते
बेईमानी पे उतर आते हैं
पलक झपकते ही
कुछ साल गुज़र जाते हैं
कुछ रिश्तों के रंग
कुछ अपने खो जाते हैं
कमबख़्त वक़्त के फरिश्ते
बेईमानी पे उतर आते हैं
पलक झपकते ही
कुछ साल याद आते हैं
कुछ मौजुदगिया तो दरकार हैं
कुछ लम्हे कह जाते हैं