लम्हे

कमबख़्त  वक़्त के फरिश्ते
बेईमानी पे उतर आते हैं
पलक झपकते ही
कुछ साल गुज़र जाते हैं
कुछ रिश्तों के रंग
कुछ अपने खो जाते हैं

कमबख़्त वक़्त के फरिश्ते
बेईमानी पे उतर आते हैं
पलक झपकते ही
कुछ साल याद आते हैं
कुछ मौजुदगिया तो दरकार हैं
कुछ लम्हे कह जाते हैं

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